शनिवार, 14 जनवरी 2012

सूर्योपासना


हिन्दू धर्म में सूर्य साक्षात देवता माने गए हैं। धार्मिक दृष्टि से सूर्य की उपासना व्यक्ति को निरोग और त्वचा रोग से मुक्त करती है। मनोकामनाओं की पूर्ति भी सूर्य पूजा से संभव है। असल में व्यावहारिक जीवन में भी सूर्य की रोशनी और ऊर्जा प्राणशक्ति का मुख्य साधन है।

वैदिक काल से ही सूर्य शक्ति के देवता माने गए हैं। शास्त्रों में रविवार का दिन सूर्य पूजा के लिए बहुत ही शुभ फल देने वाला बताया गया है। सूर्य उपासना से शक्ति, सौंदर्य, तंदुरूस्ती और ज्ञान प्राप्ति होती है। जिससे ज़िंदगी में कामयाबी पाना आसान हो जाता है। वहीं इस उपासना में सूर्य के विशेष मंत्रों का जप मनोरथ पूर्ति में बहुत ही प्रभावी माने गए हैं।

जानते हैं रविवार के दिन सूर्य उपासना के सरल उपायों को -

- सुबह स्नान के बाद सूर्यदेव को अर्घ्य दें। अर्घ्य के लिए सफेद वस्त्र पहनकर एक पात्र में गंगा या शुद्ध जल लेकर उसमें लाल फूल डालकर और चंदन डालकर पूर्व दिशा की ओर मुख कर अर्घ्य दें।

- इसके बाद पूजा में सूर्यदेव की प्रतिमा पर लाल फूल और लाल चन्दन लगाएं। साथ ही अन्य पूजन सामग्री अर्पित करें।

- रविवार के दिन सूर्य मंत्र की अधिकाधिक माला का जप बहुत प्रभावी होता है। शास्त्रों में कार्य के अनुसार भी सूर्य के भी अलग-अलग बीज मंत्र बताए गए हैं। जिनका जप हर कार्यक्षेत्र में मनचाहा और निश्चित फल देता है -

नौकरीपेशा, व्यवसायी या बिजनेसमेन के लिए -

ऊँ ह्रीं घृणि सूर्यादित्य एं

अध्यापक या ब्राह्मणों के लिए -

ऊँ ह्रीं घृणि सूर्यादित्य ऊँ

सिपाही, सुरक्षाकर्मियों के लिए -

ऊँ ह्रीं घृणि सूर्यादित्य एं

इन सूर्य मंत्रों का जप धार्मिक दृष्टि से व्यक्ति के कार्यों या इच्छापूर्ति मे आ रही बाधाओं को दूर करता है। जिससे व्यावहारिक रुप से उसका विश्वास और मनोबल ऊँचा होता है। आम भाषा में कहें तो आत्मविश्वास से लबरेज व्यक्ति जिंदादिल हो जाता है। इसलिये भी सूर्य जीवन शक्ति देने वाले देवता माने जाते हैं।

सूर्याष्टक


सूर्याष्टक

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ॥1॥
सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपमात्मजम् ।
श्वेत पद्मधरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम ॥2॥
लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम ॥3॥
हे आदिदेव आपको नमस्कार है, मुझसे प्रसन्न होइये। हे दिवाकर! आपको नमन है। हे प्रभाकर! आपको नमन है। सप्ताश्वरथ पर आरूढ़, अत्यंत उग्र, कश्यपपुत्र, श्वेत, कमलधार देव उन सूर्य को मैं प्रणाम करता हूं। लोहित (लाल) वर्ण रंग के रथ पर आरूढ़ सब लोकों के पितामह, महापापों को हरने वाले, उन सूर्यदेव को मैं प्रणाम करता हूं॥1-3॥
त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम ।
महापापहरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम् ॥4॥
बश्हितं तेजर्पुद्बजं च वायुमाकाशमेव च ।
प्रभुं च सर्व लोकानां तं सूर्य प्रणमाम्यहम् ॥5॥
सत्व-रज-तम-मय, महान परामी, साक्षात ब्रह्मा-विष्णु-महेश, महापापों को हरने वाले उन सूर्य देव को मैं प्रणाम करता हूं। वश्हत् तेज पुद्बज, आकाश, वायु, सब लोकों के प्रभु उन सूर्य देव को मैं प्रणाम करता हूं॥4-5॥
बंधुक पुष्पसंकाशं हारकुण्डलभूषितम् ।
एकचधरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम् ॥6॥
बन्धुक पुष्प जैसे, हार, कुण्डल जैसे भूषित, एकच को धारण करने वाले उन सूर्य देव को मैं प्रणाम करता हूं॥6॥
तं सूर्य जगत्कर्तारं महातेज: प्रदीपनम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम् ॥7॥
तं सूर्य जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम् ॥8॥
उन जगत के कर्ता, महातेज से प्रदीप्त, महापाप को हरने वाले उन सूर्य देव को मैं प्रणाम करता हूं। सब संसारों के नाथ, ज्ञान-विज्ञान और मोक्षदायी, महापापहारी उन सूर्य को मैं प्रणाम करता हूं॥7-8॥
॥इति श्री शिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं सम्पूर्णम्॥