शनिवार, 14 जनवरी 2012

सूर्याष्टक


सूर्याष्टक

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ॥1॥
सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपमात्मजम् ।
श्वेत पद्मधरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम ॥2॥
लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम ॥3॥
हे आदिदेव आपको नमस्कार है, मुझसे प्रसन्न होइये। हे दिवाकर! आपको नमन है। हे प्रभाकर! आपको नमन है। सप्ताश्वरथ पर आरूढ़, अत्यंत उग्र, कश्यपपुत्र, श्वेत, कमलधार देव उन सूर्य को मैं प्रणाम करता हूं। लोहित (लाल) वर्ण रंग के रथ पर आरूढ़ सब लोकों के पितामह, महापापों को हरने वाले, उन सूर्यदेव को मैं प्रणाम करता हूं॥1-3॥
त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरम ।
महापापहरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम् ॥4॥
बश्हितं तेजर्पुद्बजं च वायुमाकाशमेव च ।
प्रभुं च सर्व लोकानां तं सूर्य प्रणमाम्यहम् ॥5॥
सत्व-रज-तम-मय, महान परामी, साक्षात ब्रह्मा-विष्णु-महेश, महापापों को हरने वाले उन सूर्य देव को मैं प्रणाम करता हूं। वश्हत् तेज पुद्बज, आकाश, वायु, सब लोकों के प्रभु उन सूर्य देव को मैं प्रणाम करता हूं॥4-5॥
बंधुक पुष्पसंकाशं हारकुण्डलभूषितम् ।
एकचधरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम् ॥6॥
बन्धुक पुष्प जैसे, हार, कुण्डल जैसे भूषित, एकच को धारण करने वाले उन सूर्य देव को मैं प्रणाम करता हूं॥6॥
तं सूर्य जगत्कर्तारं महातेज: प्रदीपनम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम् ॥7॥
तं सूर्य जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम् ॥8॥
उन जगत के कर्ता, महातेज से प्रदीप्त, महापाप को हरने वाले उन सूर्य देव को मैं प्रणाम करता हूं। सब संसारों के नाथ, ज्ञान-विज्ञान और मोक्षदायी, महापापहारी उन सूर्य को मैं प्रणाम करता हूं॥7-8॥
॥इति श्री शिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं सम्पूर्णम्॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें