शुक्रवार, 5 मार्च 2010

यूं हैं श्रीकृष्ण पूर्णावतार


जो कहना है कहो मगर कान्हा से, बुरा नहीं मानते हमारे माधव


-संत प्रवर विजय कौशल
हमारे समस्त अवतारों में भगवान श्री कृष्ण ऐसे अनोखे अवतार हैं जिनका जन्मोत्सव विश्व के हर कोने में निवास करने वाला हल वर्ग का हिंदू बड़े उत्साह, उल्लास और भाव से मनाता है। भारत में तो जेलों में, थानों में तथा पुलिस लाइनों में इतने उल्लास के साथ मनाते हैं कि ऐसा लगता है कि मानों भगवान श्री कृष्ण इस विभाग के निज देव हों। शास्त्रज्ञ विद्वानों में कई बार इस विषय पर शास्त्रार्थ होता है कि भगवान श्री राम और भगवान श्री कृष्ण में छोटा बड़ा कौन है। उनकी कलाओं की संख्या पर अनेक तरह की चर्चा होती है। वाद-विवाद होता है। होना भी चाहिए क्योंकि हिंदू समाज जड़ समाज नहीं है। पूर्ण विकसित चिंतन वाला समाज है। अपने भगवान पर खुलकर चर्चा करने की छूट और साहस यह हिंदुओं के पास है। अन्य समाज में तो भगवान के बारे में कुछ बोल पाना महाअपराध माना जाता है। कई बार इनकी चर्चाएं दंगे और अशांति का कारण भी बन जाती हैं। जीवन में आनंद और प्रसन्नता के लिए मनुष्य की चिंतन धारा प्रवाहमान होनी चाहिए। जड़ता मनुष्य को गूढ़ बना देती है। भगवान श्री कृष्ण विचारों की विकास धारा के मूर्तमत प्रतीक हैं। वैसे तो दोनों भगवानों की तुलना करना अविवेक सा लगता है। को बड़ छोट कहत अपराधू लेकिन भगवान श्री कृष्ण पूर्ण इसलिए कहलाए क्योंकि उन्होंने जीवन के समस्त आयामों को पूर्ण रूप से सहजता से स्वीकार किया है। उनके जीवन में जो भी है वह पूर्ण है। वे परम योगी हैं तो परम भोगी भी हैं। उनमें गीता का गंभीर ज्ञान भरा है। तो नृत्य और गायन भी पूर्ण है। वे इधर खेल में हैं तो उधर युद्ध में भी उपस्थित हैं। श्री कृष्ण ने जीवन की समग्रता को स्वीकार भी किया है और उसी को जिया भी है। इसलिए अन्य अवतारों से श्रीकृष्ण भिन्न दिखाई देते हैं। इसी कारण आप देखेंगे कि अन्य अवतारों की पूजा तो होती है। लेकिन भक्ति और उपासना श्री कृष्ण की होती है।
भगवान श्रीकृष्ण की समग्र्रता को आप एक रोचक वार्ता से बहुत अच्छी तरह समझ सकते हैं। एक बार एक विद्यालय मेंं श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर जाना हुआ। सभी विद्यार्थियों को कुछ न कुछ बोलना चाहिए ऐसा सोचकर मैने बच्चों से एक प्रश्न किया। हमने पूछा बोलो- भाई, श्रीराम जी में और श्री कृष्ण जी में क्या अंतर है? कई बच्चों ने वही पुरानी बातें सुना दीं। कि एक में १२ कलाएं हैं और एक में १६ हैं। किसी ने भेष का अंतर बताया तो किसी ने वंशी और धनुष वाण की तुलना की। बहुत बाद में एक और बालक ने जो बात कही वह मुझे बहुत सटीक लगी। और मै समझता हूं कि उस बालक का विषय भले ही शास्त्र की विद्वता के अनुसार न हो लेकिन वह श्री कृष्ण की पूर्णता को बताने के लिए पूर्ण है। उसने कहा कि महाराज जी! भगवान श्री कृष्ण में चार बातें अधिक हैं। हमने पूछा कौन-कौन सी? वह बोला, श्री कृष्ण ने खूब खाया, खूब खेला, खूब गाया और खूब नाचा। भगवान राम के जीवन में ये चारों दिखाई नहीं देती। बात तो यह बालक ने कही है लेकिन यह सत प्रतिशत सटीक है। हम अगर अपना भी जीवन देखें तो हमारे सब के जीवन से लगभग चार बातें गायब हैं। न तो हम खा पाते हैं, न जीवन में गीत है, न जीवन में नृत्य है और न ही हमारा जीवन खेल जैसा उछलता कूदता है। हम सबका जीवन टूटा-टूटा, भारी-भारी, खोया-खोया जैसा है। गीता और संगीत की जगह जीवन में कलह- क्लेश और उदासी भरी है। खाने के नाम पर तो घर खाने के सामानों से भरा है लेकिन जीवन से भूख गायब है। और जो जीवन खेल जैसा हल्का-फुल्का होना चाहिए था वह काम के बोझ से दबा जा रहा है। अगर श्री कृष्ण से मिलना है तो अपने जीवन में ये चारों बातों का समावेश करें।
भगवान श्री कृष्ण के जीवन को देखिए। उनके खाने की बात तो सभी जानते है। माखन मिश्री के वे कितने शौकीन है। अपने घर में तृप्ति नहीं हुई तो पड़ोस का चुराने पहुंच गए। आज भी बिहारी जी में प्रतिदिन छप्पन भोग लगते हंै लेकिन भगवान को कभी ऊब नहीं होती। अब उनके खेल की बात देखिए आपको मालूम है कि भगवान ने जितने भी राक्षस मारे सब खेल खेल में ही मारे। और यह सत्य भी है कि जीवन की दुष्प्रवृत्तियां खेल गए जीवन में ही परास्त की जा सकती है। हमारा तो खेल भी एक काम हो गया है हम हर क्रिया को काम बना देते है इसलिए वह भारी हो जाता है। भगवान श्री कृष्ण का संपूर्ण जीवन अगर देखें तो दिखाई देता है कि उनके बचपन से ही संघर्ष प्रारंभ हो गया था। लेकिन उस संघर्ष को उन्होंने जीवन के गीत और संगीत के रूप में ही स्वीकार किया है। उनकी मुरली और रास इसका प्रतीक है। जीवन भी एक रास है। और यह रास प्रतिक्षण जीवन में बल रहा है। जीवन के सभी रसों को स्वीकार कर लेना और उसमें भी नृत्य करना यही रास है। हम जीवन केमीठे रस को तो स्वीकार करते है लेकिन कसैले रस को थूकना चाहते है। इसलिए जीवन की पूर्णता और धन्यता का अनुभव नहीं कर पाते। भगवान श्री कृष्ण का जीवन गीतों और गायन से भरा है। गीता जीवन का वह गीत है जो महायुद्ध के मैदान में गाया गया था और आज तक गाया जा रहा है और आगे भी गाया जाता रहेगा। गीता कभी पूर्ण नहीं होगी। लेकिन हमारे जीवन से गीत गायब हो गया। हमारे जीवन से जब भी निकलती है तो गाली और कर्कष वाणी निकलती है। चौथा भगवान का संपूर्ण जीवन नृत्य से भरा हुआ है। भगवार श्रीकृष्ण की जितनी मुद्राऐं आप मंदिरों में देखेगें तो नृत्य की ही देखेगें। श्री कृष्ण नाम आते ही नृत्य ध्यान में आने लगता है। नृत्य उसी के जीवन में प्रकट हो सकता है जिसकेजीवन में शेष ऊपर कहीं गई तीनों बातें हो। आज हमारे जीवन से नृत्य गायब है। हमारे जीवन अनेको विकारों से इतना भारी हो गया है कि नृत्य तो दूर ठीक से जीवन में चल भी नहीं पा रहे है।
भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की एक-एक बात अनूठी है। आप सदैव भगवान को किशोर अवस्था में ही देखेगें। कभी उनको दाढ़ी मूंछों में नहीं देखेगें। आखिर क्यों? क्या शरीर का नियम इनकेऊपर लागू नहीं हुआ? ऐसी बात नहीं है। शरीर केनियम तो सबके ऊपर लागू होते हैं लेकिन जो जीवन के समस्त आयामों को खेल के रूप में स्वीकार करते है वे सदैव किशोर और कौमार ही रहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण का समस्त जीवन एक महोत्सव है। महालीला है। इसलिए कृष्ण भक्त भी आपको नाचते गाते मिलेगें। भगवान तो महाभारत के युद्ध को भी जीवन के एक खेल के रूप में ही स्वीकार करते हैं। युद्ध का यह क्षण भी ईश्वर की इच्छा से आया है। इसके स्वीकार करना ही जीव का धर्म है। यही गीता का सार संक्षेप है। निमित्त बनो-कर्ता मत बनो। तब पाप पुण्य से मुक्त हो जाओगे। भगवान कितने युद्ध से निर्लिप्त हैं कि सेना का हर व्यक्ति भगवान के हाथों से मरना चाहता है। इसलिए भगवान के हाथ में जो शस्त्र है उसका नाम सुदर्शन रखा गया है। सुदर्शन मृत्यु का प्रतीक है। अब आप कल्पना करिए कि जिनके हाथ की मृत्यु इतनी सुदंर हो उसके हाथ का जीवन कितना सुंदर होगा।
भगवान के जन्म की घटना भी बड़ी रहस्यपूर्ण है। भादों की गहन अंधकार और बादलों से धिरी काली रात, कंस का कारागार इसमें प्रभु का प्राकट्य हुआ। यह भगवान की कृपा और करूणा का दर्शन है। जीवन में कितना भी गहन अंधकार होख् परिस्थिति कितनी भी विकट और विपरीत हो, संकट के बादल धिरे हों, विपत्ति की कारा में बंद हो लेकिन प्रभु का सुमिरण और भरोसा करोगे तो संपूर्ण विपरीत परिस्थिति में भी प्रभु अपनी उपस्थिति का दर्शन कराते है। श्री कृष्णा जन्माष्टमी हमको निराशा से आशा की ओर, कष्टों से कृपा की ओर ले जाने की प्रेरणा देती है। जीवन को नृत्य, गायन, महोत्सव और महा रास में सराबोर करने का नाम है श्री कृष्ण जन्मोत्सव। यह हमारे जीवन में कितना आया है यह देखने की बात है।

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